माँ कात्यायनी
चन्द्रहासोज्जवलकरा शार्दूलवरवाहना ।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवीं दानवघातिनी ।।
नवरात्रि के छठे दिन माँ कात्यायनी की पूजा की जाती है ।इनकी उपासना और अराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ ,धर्म ,काम और मोक्ष चारों फ़लों की प्राप्ति होती है ।उसके रोग ,संताप, भय और समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं ।
कात्य गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन ने भगवती पराम्बा की कठिन तपस्या की ।उनकी इच्छा थी कि उन्हें पुत्री प्राप्त हो ।माँ भगवती ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया इसीलिए यह देवी कात्यायनी कहलाईं ।
माँ कात्यायनी अमोघ फ़लदायिनी हैं ।भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा की थी ।यह पूजा कालिंदी यमुना के तट पर की गयी थी ।इसीलिए यह ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं ।इनका स्वरूप अत्यंत भव्य और दिव्य है ।यह स्वर्ण के समान चमकीली हैं और भास्वर हैं ।इनकी चार भुजाऐं हैं ।दायीं तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वरमुद्रा में है ।माँ के बाँयीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है व नीचे वाले हाथ में कमल का फ़ूल सुशोभित है ।इनका वाहन भी सिंह है ।