Sunday 28 September 2014

Maa Kusmanda

                  माँ  कुष्माण्डा

सुरासम्पूर्णकलशं     रुधिराप्लुतमेव  च ।
दधाना   हस्तपद्माभ्यां  कुष्माण्डा  शुभदास्तु  मे ।।

        नवरात्रि   में  चौथे  दिन  देवी  कुष्माण्डा   की   पूजा  होती  है ।अपनी
मंद  , हल्की  हंसी  के द्वारा  ब्रह्माण्ड  को  उत्पन्न  करने  के  कारण  इन्हे  कुष्माण्डा कहा   गया ।जब  सृष्टि  नही थी चारों  तरफ  अंधकार  ही  अंधकार   था  ,तब इस  देवी  ने अपने हास्य  से  ब्रह्माण्ड  की  रचना की ।इसलिए  इन्हे  सृष्टि  की  आदिशक्ति  कहा  गया ।

           इनकी   आठ  भुजाऐं  हैं,   इसलिए ये   अष्टभुजा  कहलाई ।इनके  सात हाथों  में क्रमशः   कमण्डल  ,धनुष,बाण,   कमलपुष्प ,अमृतपूर्ण कलश ,चक्र और गदा  है ।आठवें हाथ में  सिद्धियों और  निधियो  को  देनेवाली  जपमाला है ।

       इस  देवी  का  वास  सूर्यमंडल के भीतर   लोक  में  है ।इसीलिए   इनके  शरीर की  कान्ति  और  प्रभा  सूर्य की  भाति  ही  देदीप्यमान  है  ।इनके  ही तेज  से  दसों  दिशाएँ आलोकित हैं।ब्रह्माण्ड  की सभी  वस्तुओं  और  प्राणियों में  इन्हीं का  तेज  व्याप्त  है  ।

         नवरात्रि  के  चौथे  दिन  इस  देवी  की पूजा करने  से  भक्तों  के  रोगों और शोकों का नाश  होता है  तथा उसे  आयु ,यश, बल और आरोग्य  प्राप्त  होता है ।
यह  देवी  अत्यल्प  सेवा और  भक्ति  से ही  प्रसन्न  होकर  आर्शीवाद  देती है ।

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