Friday 26 September 2014

Mata Brahmcharini

                 माता   ब्रह्मचारिणी
 
दधानां   कर  पहाभ्यामक्षमाला    कमण्डलम् ।
देवी  प्रसीदतु   मयि    ब्रह्मद्वचारिण्यनुत्तमा ।।

         माँ  दुर्गा  का दूसरा  शक्ति स्वरुप ब्रह्मचारिणी   है ।माँ   श्वेत  वस्त्र  पहने दाऐं  हाथ  में    अष्टदल   की  माला  और  बाऐं   हाथ  में  कमण्डल  लिए    हुए  सुशोभित   है । माँ  ब्रह्मचारिणी के इस रुप   की  अराधना   से  मनचाहे  फ़ल  की  प्राप्ति   होती  है ।ब्रह्मचारिणी  का अर्थ -  तप का  आचरण  करने वाली है ।
माँ के   इस दिव्य   स्वरुप का  पूजन करने   मात्र  से   ही  भक्तों  में  आलस्य  ,अहंकार , लोभ , स्वार्थपरता ,व ईर्ष्या  जैसी  दुष्प्रवृतियां   दूर  होती  हैं ।

        पौराणिक   ग्रंथों  के    अनुसार  यह  हिमालय  की  पुत्री  थीं   तथा  नारद  के  उपदेश    के  बाद  इन्होंने  भगवान शंकर  को  पति  के  रूप  में  पाने के  लिए कई  वर्षों   तक   कठोर  तप  किया ।तपस्या  के  समय  सिर्फ़   फ़ल  और  पत्तियाँ  खाईं।  इसी  कड़ी  तपस्या  के  कारण  उन्हें  ब्रह्मचारिणी   व  तपस्चारिणी  कहा  गया  है  ।कठोर  तप  के  बाद  इनका  विवाह  भगवान  शिव  से  हुआ ।माता  सदैव  आनंदमयी  रहती  हैं ।

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