Sunday, 18 October 2015

न वरात्री का आध्यात्मिक रहस्य

!!!पौराणिक  क था  है  कि  असुरों के  उपद्रव  से देवता  जब  काफ़ी  त्रस्तहो गये  ,तो अपनी रक्षा हेतु शक्ति  की अराधना करने लगे ,फ़लस्वरुप  शक्ति ने दुर्गा रूप में प्रगट होकर असुरों का विध्वंस कर देवताओं के देवत्व की रक्षा की।
तब से अनेक देवियों की पूजा का प्रचलन हिंदू धर्म में प्रचलित हुआ ।आज भी हिंदू समाज में शक्ति के नौ रुपों की नौ दीनो तक पूजा होती है ,जिसे न वरात्री कहते हैं।

     

     पहले दिन  शैलपुत्री  के नाम से देवी दुर्गा पूजी जाती  हैं।वह पर्वतराज हिमालय की पुत्री थी इसलिए पर्वत की पुत्री 'पार्वती  या शैलपुत्री  ' के नाम से शंकर की पत्नी बनी।
        इसका वास्तविक  रहस्य --- दुर्गा  को  शिवाशक्ति कहा जाता है ,हाथ में माला है ,माला परमात्मा की याद का प्रतीक है , जब परमात्मा को याद करेंगे तो जीवन में मुश्किलों से सामना करने का ,निर्णय करने , परखने की ,विस्तार को सार में लाने की अस्त शक्ति प्रप्त होती है, इसलिए दुर्गा को अष्टभुजा दिखाते हैं ,हाथ में बाण है यह   ज्ञान रूपी बाण विकारों का संहार  करता है।इस तरह हम केवल दुर्गा का आह्वाहन  हीनहीँ करते  ,बल्कि दुर्गा समान बनकर दुर्गुणों का संहार भी करते हैं।

         दूसरे दिन की देवी 'ब्रह्मचारिणी  ' हैं , परमात्मा ने जो ज्ञान दिया है ,उससे स्वंय को त था दूसरे को भरपूर ज्ञान देना ही सरस्वती का आह्वाहन करना है।

    तीसरे  दिन 'चंद्रघंटा  '  रूप की पूजा होती है ,पुराणों की मान्यता है कि असुरों के प्रभाव से देवता काफ़ी दीन हीन त था दुखी हो गये ,तो देवी की अराधना  की। प्रसन्न होकर  चंद्रघंटा प्रकट हुई और असुरों का संहार करके देवताओं को संकट से मुक्ति दिलाई।वास्तविक अर्थ  -शीतला अपने शांत स्वभाव से दुसरो को भी शांति का ,शीतलता का अनुभव कराना ही शीतला देवी का आह्वाहन करना है।

          चौथे दिन की देवी कूष्माणडा  नाम से पूँजी जाती हैं। बताया जाता है कि यह देवी खून पीने वाली देवी हैं। इनकी पूजा में प शु बलि का विधान है।वास्तव में अंदर जो भी विकारी स्वभाव व ,संस्कार है उसपर दृढ़ प्रतिज्ञा करके सत्य संकल्प से मुक्ति पाना ,त्याग करना ही काली का आह्वाहन करना है।

          पाँचवे दिन की देवी 'स्कंदमाता  ' हैं। कहते हैं।कि यह ज्ञान देने वाली देवी हैं।इनकी पूजा ब्रह्मा ,विष्णु शंकर समेत यक्ष ,किन्नरों और दैत्यों ने भी की।इनकी पूजा करने से ही मनुष्य ज्ञानी बनता है।

      
     छठे दिन की देवी माँ 'कात्यानी  ' हैं।इनकी पूजा करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है। यह सर्वकार्यसिद्दि देवी हैं।इसका अर्थ है मायावी विषय विकारोंसे सदा दूर रहना और दूसरों को भी मुक्त करना ही वैष्णव देवी का आह्वाहन करना है।

       सात वें दिन की देवी हैं 'कालरात्री  '।इनका रंग काला है यह ग धे की स वारी करती हैं।सही अर्थों में दुःखमय परिस्थितियों में सदा उमंग उत्साह में रहना ,सबों कोउमंग उत्साह देना ही उमा देवी का आह्वाहन करना है।

       आठवें दिन की शक्ति का नाम है 'महागौरी  '  कहते हैं कि कन्या रूप में यह बिल्कुल काली थीं शंकर से शादीकरने हेतु अपने गौरवर्ण के लिए ब्रह्मा की पूजा की ।तब ब्रह्मा ने प्रसन्न होकर उन्हें काली से गोरी बना दिया।इसका अर्थ यह है कि स भी को परमात्मा के ज्ञान से परिचित कराके स भी का तीसरा नेत्र खोल उनके जीवन में आध्यात्मिक क्रांति लाना ही मीनाक्षी देवी का आह्वाहन करना है।

              नवरात्रि के नौवीं देवी हैं  'सिद्धिदात्री  '।कहा गया है कि यह वह शक्ति है जो विश्व का कल्याण करती है ,जगत का क ष्ट दूरकर अपने भक्तजनों को मोक्ष प्रदान करती है , जीवन में महान लक्षय धारण करना ही महालक्ष्मी का आह्वाहन करना है।

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