Saturday, 28 March 2015

शबरी के जूठे बेरों में

राम नहीं  मिलते ईंटों  में गारा   में, राम  मिलें  निर्धन की  आँसू धारा में
राम  मिलें हैं वचन निभाती आयु को,राम मिलें हैं घायल पड़े  जटायु को
राम  मिलेगें अंगद वाले  पाँवमें,राम मिलें हैं पंचबटी की छाँवमें
राम  मिलेंगे मर्यादा से  जीने में,राम  मिलेंगे बजरंगी  के  सीने में
राम  मिले हैं वचनबद्ध वनवासों  में,राम  मिलें  हैं  केबट के विश्वासों में
राम  मिलें अनुसुइया की  मानवता  को, राम मिले सीता जैसी  पावनता को
राम  मिले ममता   की  माँ  कौशल्या  को,राम मिलें  हैं पत्थड़  बनी अहिल्या  को
राम  नही  मिलते  मंदिर  के फ़ेरों  में,राम  मिले शबरी  के जूठे बेरों में।।


                           हरिओम        पंवार                                 

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